
22 जुलाई को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद में जो भी हुआ उसके बारे में कुछ भी लिखते समय अन्दर से शर्म ही महसूस होती है। जब संसद में नोट उछाले जा रहे थे तब हम अपने काम के सिलसिले में चंडीगढ़ से दिल्ली का सफर बस से कर रहे थे। हमारे छोटे भाई लगातार फ़ोन से संसद का आंखों देखा हाल बयां कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने बताया नोटों की गड्डियों का किस्सा, हमारे मुंह से ओह ओह निकल गया, अगल बगल के यात्री भी देखने लग गये, पर शरम के मारे उनसे कुछ बता भी नही पाया। उसके बाद जो भी कुछ होता गया, हम सुनते रहे।
आज चिट्ठाजगत पर पुराने लेख देखते समय श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' जी की कविता -"घिन आने लगी है 'घोड़ामण्डी' से" देखी, जिन्होंने ना पढ पाई हो वो यहां से पढ़ सकते हैं। बहुत अच्छा चित्रण किया है कल और आज के नेताओं का। कुछ पंक्तियां तोबहुत ही प्रभावी हैं -
चिलचिलाती धूप में
पसीने से लथपथ ..
आते थे जब भी ..
भटकते हुए मांग कर
किसी से 'लिफ्ट'
अथवा पैदल ...
तुम्हारा भूखा प्यासा
पदयात्रा से थका चेहरा
कर देता था व्याकुल
हर गावं में मां को ..
दौड़ पड़ती थी बहना
ले पानी का गिलास
भाभी टांक देती थी बहुधा
तुम्हारे ‘फटे हुए कुरते’ के बटन
बाबा सोचते थे हरबार
देने को एक नया कुरता
मुझसे पहले ….. तुम्हें
किंतु ......
जबसे देखता हूँ तुम्हें…
पहने हुए तरह तरह के मुखौटे
बदलते हुए टोपियाँ …. हरपल
निकलते हुए कार से
गावं के उस मिटटी के चबूतरे का
उडाते हुए उपहास .....
साथ ही याद आ गई बचपन में एक कवि सम्मेलन में सुनी ये चार पक्तियां -
जिनके हाथों में सरकार है,
उनका संदिग्ध किरदार है,
आप कहते हैं संसद जिसे,
हस्तिनापुर का दरबार है।
सत्य को झूठ लिखता रहा...
राजधानी का अखबार है॥
कवि के नाम पर बहुत पक्का नही हूं, कोशिश करूंगा कि पूरी कविता हाथ लग पाये, शायद अंसार कम्बरी जी ने सुनाई थी। अगर गलत हो तो सही करवा दिजियेगा।
14 comments:
bahut sahi likha hai tiwari ji. bahut buri haalat hai..
बहूत सही लिखा है भईया, ये हमारे देश के कर्णधार हैं, इतनी भी शर्म नही रही कि संसद मे हो रहे हलचल को पूरा विश्व देखता है।
very well said.
bahut sahi baat apne likhi hai par in sabhi baaton ko sirf blogs par hi likhna kafi hai hum bhi to kahi na kahi is cheez ka hissa hai.
bahut sahi baat apne likhi hai par in sabhi baaton ko sirf blogs par hi likhna kafi hai hum bhi to kahi na kahi is cheez ka hissa hai.
bahut sahi likha hai aapne.
par kya ye likhna hi kafi hai kyonki kahi na kahi hum log bhi in cheezo ke liye zimmedar hai.
वाह भाई, क्या बात है? सही जा रहे हो. ऐसे ही लिखते रहो. आज सभी पोस्ट पढ़ी तुम्हारी. अच्छा लगा.
भाई ये प्रजातंत्र नहीं नोट्तंत्र है ,इसमें आज से नहीं हमेशा से ही एक ही भाषा बोली जाती है और वो है पैसो की,आम भारतीय के लिए यहाँ कोई स्थान नहीं है
अंकुर
अफसोसजनक स्थितियोँ पर बहुत उम्दा लिखा है, लिखते रहें.
तिवारी जी , क्या खूब लिखा हैं ...
Bhai isame apni kamiya dekho. Hum log aise log ke hatho des ka netritaw ko saupa hai jo jaati paati, dharam aur verg vishesh ki rajneeti karte hain. Iske liye hum hi jimmedar hai jo inko chunate hain jinka koi dharam nahi jati nahi soch nahi. sirf apna bhala. desh aur janta jaye bhard me. Aur janta bhi khus ki wo hamare verg vishesh ka phakchhadhar hai. Ye nahi jante ki in lakadiyo pe aag laga ke wo rajneeti ki roti shek raha hai.....
सत्य वचन बन्धु !
muje aapakee kalam ka tevar bha gaya
aaj hi aapka blog padha. bahut hi acchha laga. aaj hara loktantra wakai notetantra banta ja raha hai aur neta bhrast hone ki sari seema par kar chuke hai.aaj jaroorat hai karmath emandar yuwa warg ko rajneeti me aane ki
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