Sunday, July 6, 2008

आरुषि केस का सच...

पिछले करीब डेढ़ महीने से कमोबेश सभी टीवी चैनलों की शोभा बने रहने के बाद और अभी भी चार लोगों के बीच बहस का एक मुद्दा बने रहने के बाद भी जब ये केस सुलझने का नाम ही नही ले रहा था तो हमने भी सोचा की चलो हम ही अपनी अकल लगाते हैं और इस केस के तह तक पहुँचने की कोशिश करते हैं.. खैर, एक बारगी पूरे केस का सिंहावलोकन करने के बाद इस दोहरे हत्याकांड के सूत्रधार महोदय (अथवा महोदया) को तो हम भी चिन्हित नही कर पाए, पर एक बात तो मैं भी कहूँगा की इस केस से एक बहुत बड़ा सच जरूर आ गया पूरे देश और दुनिया के सामने, और वो ये की हमारे देश की सर्वोच्च जाँच पड़ताल संस्था (सीबीआई) के बस का शायद अब कुछ भी नही है..
पहले जब भी किसी नेता के ऊपर सीबीआई जांच बैठाई जाती थी तो कुछ उम्मीद रहती थी की शायद ये केस सुलझेगा, पर धीरे धीरे देश ने ये स्वीकार कर लिया कि नेताओं को सजा दिलवा पाना सीबीआई क्या किसी के लिए भी असंभव है. पर अब जब नेताओं क्या आम जनता के केस भी नही सुलझ पा रहे हैं तो ऐसी संस्थाओं की आवश्यकता एवं कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठना स्वाभाविक हो जाता है.
अब आते हैं आरुषि केस पर. एक घर के अन्दर एक रात २ लोगों का कत्ल हो जाता है. उस घर से जुड़े जितने भी लोग हैं उन सभी पे शक किया जाता है. और सबसे पहली गिरफ्तारी होती है आरुषि के पिता यानि की डा. तलवार की. उनकी गिरफ्तारी तक का काम किया गया विश्व प्रसिद्द यू पी पुलिस के द्वारा जिन्होंने केस को पूरी तरह सुलझाने का मीडिया के सामने बहुत अच्छे से दावा किया, साथ ही बिना किसी संकोच के आरुषि और हेमराज के संबंधों पर भी दावे कर दिए. खैर, अपेक्षित राजनीति के बाद ये केस सोंप दिया गया सीबीआई को. और उस दिन से आज तक सीबीआई की बदौलत आम आदमी नारको टेस्ट, लाई डिटेक्शन टेस्ट और भी न जाने क्या क्या टेस्टों के बारे में जान गया है. पर केस का पूर्ण सत्य आना अभी भी अपेक्षित है. प्रतिदिन टीवी देखते या अखबार पढ़ते समय ये नही पता होता की अब आज किसके ऊपर कातिल होने का सहरा बंधने वाला है.
खैर, कातिल कोई भी हो पर ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है की ये बात सभी को पता है की ये दोनों कत्ल किसी सोची समझी रणनीति की तहत नही किए गए. जितने भी लोग शक के घेरे में हैं उनमें से किसी ने भी शायद कागज कलम लेके कत्ल करने की रणनीति नही बनाई होगी. जो कुछ भी हुआ उसके पीछे केवल त्वरित उन्माद था. पर डेढ़ महीने की कवायद के बाद भी केस ना सुलझ पाना केवल और केवल ये बताता है की आजकल कितना आसान हो गया है किसी केस से बचना. डा. तलवार अभी भी जेल में हैं. यद्यपि सीबीआई ने उनको क्लीन चिट नही दी हेई पर अगर सच आने के बाद वो निर्दोष साबित होते हैं तो ये सोचने की बात है की जिन केसों की सीबीआई जांच नही होती उनमें कितने ही डा. तलवार भारत की जेलों में बंद होंगे. जिन केसों पर मीडिया इतना मेहरबान नही होता, सीबीआई जांच नही बैठाई जाती, उन केसों में कितने ही निर्दोष लोग ऐसे ही जेल की हवा खा जाते होंगे. और डा. तलवार, कृष्णा, राजकुमार या जो भी हो, देश की सर्वोच्च जांच संस्था को आसानी से गच्चा दे सकते हैं...

हम तो बस उम्मीद ही कर सकते हैं की जो सच में कातिल हो उसे ही सजा मिले और जरूर मिले. पर ऐसी नाकामी पर पुलिस और सीबीआई दोनों को चिंतन जरूर करना चाहिए...

4 comments:

Devendra Yadav said...

Well said, it's your perception and it might be truth for you but every one has a different angle to see the thing.

गरिमा said...

बिल्कुल सही लिखा है भईया... ऐसे ना जाने कितने केस, और बेगुनाह गुमनामी की सजा काट रहे हैं... और जब तक कोई सच्चा जलजला नही आयेगा काटते रहेंगे।

डॉ .अनुराग said...

kahte haiki case sulajh gaya par mere palle abhi bhi kuch bat nahi padh rahi hai kaise ek chote se flet me 2 logo ka qatl hua ,4 logo ne sharab pi,chat ka tala khula .....fir bhi do log sote rahe?
kyu dr talvar haridvaar ke raste me hinahi laut aaye ?kyu unhe shav jalane ki itni jaldi thi ?baki raha media ......iska to bhagvaan hi malik hai.

shama said...

Akhil...aapke blogpe pehlebhee aayee thee...Ek baat kahun??Chintan hame karnaa hai...plis mehkma hamare samajke maa behnoka jaaya hai...ye samajkee tasveer hain, hkaheen alag inka nirmaan nahee hua..! Kabhi socha ki hamne 200/250 saal purane, angrezon ne banaye huw qanoon abtak kyon nahee badle, jinme gunehgaarko poorn aarakshit kiya jaata hai....qanoon se saaf bach nikalneke kitnehee taur tareeqe bane hue hain !
Zara sosho, Indira gandheeke qatlke kitne saare chashm deed gawah the...phirbhee unhe fansee lagneme 10 saal lag gaye...kis vakeelke badaulat??